Woman day santosh devi : पति की मौत के बाद घर संभाला, अकेले की 7 बेटियों की परवरिश, खाट बुनी, आटा चक्की पर किया काम

बेटियों के लिए पिता और भाई बनी संतोष देवी, पढ़ा-लिखाकर बनाया आत्मनिर्भर

 

Woman day santosh devi : मात्र 30 साल की उम्र में पति की असामयिक मौत के बाद उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। जीने के लिए कोई सहारा भी नहीं था, उपर से सात बेटियाें की परवरिश। लेकिन उसने हार नहीं मानीं, संघर्ष किया, हालातों के साथ लड़ी और बेटियों की अच्छी परवरिश कर, उन्हें पढ़ा-लिखाकर आत्मनिर्भर बनाया।

हम बात कर रहे हैं नरवाना की संतोष देवी की। संतोष देवी (santosh devi) अपनी बेटियों के लिए जहां त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति बनी हैं तो समाज के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी हैं।

बड़सिकरी गांव निवासी संतोष की शादी नरवाना के सतपाल शर्मा के साथ हुई थी। शादी के बाद संतोष तो सात बेटियां हुई। 1991 में सतपाल की हृदय गति रूकने से असामयिक मौत हो गई तो संतोष पर दुखों का पहाड़ टूट गया। पति की मौत के समय संतोष की उम्र मात्र 30 साल थी।

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सात बेटियों के सिर से पिता का साया उठ गया। बेटियों को अच्छी परवरिश देने की जिम्मेदारी संतोष पर ही थी, इसलिए उसने अपने नाम के अनुरूप पतित की मौत के बाद संतोष कर लिया और बेटियों के लिए ही अपनी जिंदगी को समर्पित कर दिया।

संतोष (santosh narwana) ने खेती की, भैंस पाली। दिन के समय संतोष खाट की बुनाई करती। सुबह और शाम को आटा चक्की चलाती। सिलाई का काम भी किया और बेटियों को पढ़ाया। मास्टर डिग्री से लेकर कंप्यूटर के कोर्स करवाए और उन्हें अच्छे संस्कार देते हुए आत्मनिर्भर बनाया। आज संतोष की बेटियों की शादी हो चुकी है। इनमें तीन बेटियां नौकरी भी कर रही हैं।

संतोष की बेटी पिंकी और रजनी ने कहा कि वर्तमान में माता-पिता एक या दो बच्चों को पालन-पोषण करने में परेशान हो जाते हैं लेकिन उनकी मां ने बिना कोई शिकायत सात बेटियों का पाला और उन्हें जरूरत की हर चीज उपलब्ध करवाई।

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उनकी अपनी मां पर गर्व है, जिन्होंने कभी पिता और भाई की कमी महसूस नहीं होने दी। खुद परेशानी झेली, संघर्ष किया लेकिन उन पर कभी भार नहीं आने दिया। सभी बेटियां अपनी मां को ही रोल माडल मानती हैं।