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कपास से गुलाबी सुंडी के लार्वा को नष्ट करने की तकनीकी, किसानों को दिया प्रशिक्षण 

कीट वैज्ञानिक डा. अनिल जाखड़ ने कृषि अधिकारियों से कहा कि किसानों से खेत में रखी कपास की लकड़ियों को झड़वा कर दें, ताकि उनमें मौजूद गुलाबी सुंडी के लार्वा को नष्ट किया जा सके। लकड़ियों को जाली से  ढक देना चाहिए
 
गुलाबी सुंडी सिरदर्द बनी हुई
कपास उत्पादक किसानों के लिए गुलाबी सुंडी सिरदर्द बनी हुई

कपास उत्पादक किसानों के लिए गुलाबी सुंडी सिरदर्द बनी हुई हैं। गुलाबी सुंडी से होने वाले नुकसान के चलते किसान कपास की खेती करने से पीछे हट रहे हैं, लेकिन कृषि विशेषज्ञ इसके प्रकोप को खत्म करने की तरीके इजाद कर रहे हैं। ताकि किसानों की कपास का उत्पादन को बढ़ा सके। इसी कड़ी में कृषि विभाग की तरफ से हरियाणा के जींद स्थित हमेटी में गुलाबी सुंडी के प्रकोप को कम करने के लिए प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया।

इसमें कृषि विशेषज्ञों ने किसानों से विचार सांझा किए और गुलाबी सुंडी के नियंत्रण पर फोकस रहा। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कपास अनुभाग के अध्यक्ष वैज्ञानिक डा. कर्मल सिंह ने बताया कि कपास फसल की बहुत अगेती व बहुत पछेती बिजाई नहीं करनी चाहिए। कपास फसल की एक से 15 मई के बीच के अंतराल में ही बिजाई करने से गुलाबी सुंडी का प्रकोप कम हो जाता है।

कीट वैज्ञानिक डा. अनिल जाखड़ ने कृषि अधिकारियों से कहा कि किसानों से खेत में रखी कपास की लकड़ियों को झड़वा कर दें, ताकि उनमें मौजूद गुलाबी सुंडी के लार्वा को नष्ट किया जा सके। लकड़ियों को जाली से  ढक देना चाहिए ताकि गुलाबी सुंडी की तितली को वहीं पर रोका जा सके व गुलाबी सुंडी के प्रकोप को नियंत्रित किया जा सके। अक्सर देखने को मिलता है कि किसान कपास के पौधे को काटने के बाद उसको खेत में ही रख देते हैं। जहां पर इन पौधों पर पूरे साल गुलाबी सुंडी का लार्वा चिपका रहता हैं और जब किसान कपास की खेती करता हैं तो फिर से सक्रिय हो जाता हैं

ऐसे में किसानों को जब भी कपास की लकड़ी खेतों में रखे तो उसको झड़ाव कर दे और उसके ऊपर जाली लगाकर ढक दें, ताकि गुलाबी सुंडी का लार्वा बाहर नहीं निकल पाए।  पिछले कुछ वर्षों से गुलाबी सुंडी ने कपास में काफी नुकसान किया है। जिसकी वजह से किसानों को घाटा उठाना पड़ा है। गुलाबी सुंडी के नियंत्रण के लिए किसान अकेले रसायनिक कीटनाशकों पर निर्भर न रहकर समन्वित कीट नियंत्रण के तरीके अपनाएं।

डा. अनिल ने किसानों को एक से ज्यादा कीटनाशियों के मिश्रण का प्रयोग करने से भी मना किया। फसल में गुलाबी सुंडी की निगरानी के लिए फेरोमोन ट्रैप्स का प्रयोग करने की सलाह दी। पादप रोग विशेषज्ञ डा. अनिल सैनी ने कपास में लगने वाली बीमारियों की रोकथाम बारे विस्तार से बताया। कृषि उपनिदेशक डा. गिरीश नागपाल ने कृषि अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि ज्यादा से ज्यादा किसानों को कपास उत्पादन के लिए जागरूक करें।

ताकि जिले में कपास की फसल का रकबा बढ़ाया जा सके। मंच संचालन हमेटी के ट्रेनर डा. सुभाष चंद्र ने किया। कार्यक्रम में जींद व पानीपत जिले के लगभग 100 कृषि विकास अधिकारी, खंड कृषि अधिकारी, कृषि पर्यवेक्षकों ने हिस्सा लिया।