Success Story : बथुए ने हरियाणा के इस गांव के किसानों को बना दिया मालामाल, 400 एकड़ में हो रही खेती
बथुआ को कई जगह पर खरपतवार के तौर जाना जाता है, लेकिन हरियाणा के किसानों ने इसको कमाई का साधन बना दिया है। जहां पर किसानों ने परंपरागत खेती को छोड़कर अपने खेतों में बथुआ की फसल ही उगाना शुरू कर दिया। खेतों में तैयार हो रहा यह बथुआ ही किसानों की जेब को नोट से भर रहा है। हरियाणा के जींद के जिले के कमाचखेड़ा गांव के किसानों ने बथुआ की खेती शुरू की है।
यहां के किसान लगभग 400 एकड में बथुआ की खेती करती है और उनके द्वारा तैयार बथुआ की डिमांड दिल्ली जैसे ही महानगरों में खूब है। जहां पर किसान प्रतिदिन यहां से तैयार बथुआ को बड़ी मंडियों में ले जाते है और वहां पर सब्जी का काम करने वाले लोग हाथों -हाथ इसको खरीद रहे है। जहां पर किसानों को इसकी कीमत भी अच्छी मिल रही है। ऐसे में किसान बथुआ की खेती करके मालामाल बन रहे है।
कमाचखेड़ा के किसानों का कहना है कि पहले परंपरागत खेती की जाती थी, लेकिन कई साल से कमाचखेड़ा के किसानों सब्जी की खेती की शुरुआत कर दी। जहां पर परंपरागत खेती को छोड़कर दूसरी खेती की जाने लगे। अब उनके खेत में तैयार किए गए बथुए की डिमांड मंडियों में काफी ज्यादा है।
उनके गांव में करीब 400 एकड़ में बथुए की खेती की जा रही है। जहां पर लगभग 30 क्विंटल के करीब बथुआ प्रतिदिन दिल्ली, गुरुग्राम गाजियाबाद पानीपत, सोनीपत, रोहतक की मंडियों में बेचा जा रहा है। जहां पर किसानों को बथुए के अच्छे रेट मिल रहे है। किसान प्रदीप, सुनील, राकेश ने बताया कि बथुए की फसल कम लागत में तैयार हो जाती है और एक एकड़ में करीब डेढ़ से 2 लाख रूपये तक का मुनाफा हो जाता है।
तीन बार तोड़ा जाता है बथुए को
कमाचखेड़ा के किसानों का कहना है कि बथुए की खेती किसानों के लिए लाभकारी है। जहां पर किसानों को बथुए को बिजाई करने के समय करीब दस हजार रुपये का बीज प्रति एकड़ डाला जाता है। इसके बाद न तो इसमें कीटनाशक के छिड़काव की जरूरत है और न ही दवाई की जरूरत है। केवल पानी से ही इसकी पैदावार बढ़ जाती है। बीज गांव में ही मिल जाता है। एक एकड़ जमीन में एक किवंटल बीज प्रयोग किया जाता है। कई बार तो किसान धान की फसल की कटाई से पहले ही बथुए के बीज को बो देते हैं और धान की कटाई के बाद बथुआ पैदा हो जाता है। जहां पर पानी देते ही बढ़ जाता है और एक बार बिजाई करने पर तीन बार बथुए को काटा जाता है।
मिनटों में बिक जाता है बथुआ
किसानों को एक साल में तीन फसलें मिल जाती हैं। धान के बाद बथुए की खेती के बाद गेहूं की खेती से गेहूं की पैदावार भी अच्छी होती है। आलम यह है कि कमाच खेड़ा गांव के किसानों से प्रेरणा लेकर आस पास के देवरड़, मालवी, फरमाना और बेडवा गांव के किसान भी बथुए की खेती करने लगे हैं और मोटी आमदनी कर रहे हैं। बथुए को खेतों से काटने के लिए मजदूरों को भी गांव में काम मिल जाता है। किसानों ने बताया कि दिल्ली की आजादपुर सब्जीमंडी में उनका बथुआ 100 से 120 रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से मिनटों में बिक जाता है।
