cancer treatment india : अब लार और सांस से कैंसर की होगी पहचान, एमडीयू के मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने की रिसर्च

Parvesh Mailk
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अब लार और सांस से कैंसर की होगी पहचान एमडीयू के मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने की रिसर्च

cancer treatment india : भारत के चिकित्सा के क्षेत्र में कैंसर के ईलाज में तेजी से रिसर्च चल रहीं है। पीजीआई चंडीगढ़ ने जहाँ बिना कीमो लगाए कैंसर (cancer treatment india) का ईलाज की तकनीकी बनाई हैं, वहीं रोहतक के एमडीयू के मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने अब बिना चीरफाड़ सिर्फ लार और सांस से कैंसर की पहचान का तरीका निकाला है।

यह रिसर्च अंतिम चरण में चल रही है। सबकुछ ठीक ठाक रहा तो जल्दी मुंह से स्लाइवा (लार) व सांस लेकर ही कैंसर की पहचान की जा सकेगी।

इस संबंध में एमडीयू के मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी विभाग में शोध अंतिम चरण में बढ़ चुका है। फिलहाल मुंह व फेफड़े के कैंसर पीड़ितों के लिए शोध (cancer treatment india) किया जा रहा है। यह पूरी तरह सफल रहा तो अन्य सभी कैंसर में भी इसका लाभ मिलेगा।

एमडीयू में इन दिनों एक बेहतर शोध चल रहा है। इस पर मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. रश्मि भारद्वाज पिछले चार साल से शोध कर रही हैं। पिछले कुछ समय से शोध अपने मध्यम स्तर पर अटका था। अब इसके कुछ सकारात्मक परिणाम आने से यह शोध अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ चला है।

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शोध के लिए पीजीआईएमएस से मुंह के कैंसर व फेफड़े के कैंसर पीड़ितों के सैंपल लिए गए हैं। मुंह के कैंसर के 80 व सांस के कैंसर के 50 लोगों पर शोध किया जा रहा है।

 

बायोप्सी का तरीका खर्चीला और दर्दनाक

शोधकर्ता की मानें तो अब तक कैंसर की पहचान के लिए बायोप्सी ही एक तरीका रहा है। यह एक चीरफाड़ व दर्द के अलावा खर्चीली तकनीक है। इसमें मरीज को ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है। एमडीयू में द्रव्य पदार्थ से कैंसर (cancer treatment india) की पहचान पर शोध चल रहा है। इसके तहत मुंह के कैंसर पीड़ितों से स्लाइवा लेकर उसकी नैनो पार्टिकल के जरिए जेनेटिक जानकारी प्राप्त की जाती है।

स्लाइवा के एक्सोजोम में व्यक्ति का जैनेटिक कोड व प्राकृतिक सेल की जानकारी होती है। इनके आने वाले बदलाव को शुरुआती स्तर पर ही पहचान लिया जाए तो समय रहते बीमारी का पता लगाना व इलाज करना संभव है।

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फेफड़े के कैंसर की पहचान के लिए नली में भरी जाती है सांस

इसी तरह फेफड़े के कैंसर (cancer treatment india) की पहचान के लिए मरीज की सांस नली में भरी जाती है। इस ट्यूब के जरिए एक्सोजोम यानी जेनेटिक बदलाव का अध्ययन किया जाता है। लैब में किया यह शोध काफी हद तक सफल रहा है। शोध अंतिम चरण में हैं। इसे सभी परिणाम सकारात्मक मिलने पर मरीजों के लिए प्रयोग किया जा सकेगा।

मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. रश्मि भारद्वाज ने बताया कि कैंसर पर एमडीयू में शोध चल रहा है। यह मुंह और फेफड़े के कैंसर (cancer treatment india) की पहचान बगैर किसी चीरफाड़ या बायोप्सी के संभव हो सकेगी। इसके लिए मुंह का स्लाइवा व सांस को नैनो पार्टिकल के जरिए प्राकृतिक सेल का अध्ययन किया जाता है।

शोध के परिणाम काफी हद तक सफल रहे हैं। जल्दी ही इसे पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद मरीजों के लिए भी इसे प्रयोग किया जा सकेगा।

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मेरा नाम प्रवेश है, मैने पिछले साल जनवरी 2023 में मास्टर ऑफ आर्ट जर्नलिजम मासकॉम किया है, तभी से क्लिनबोल्ड से कंटेंट राइटर के तौर से जुड़ा हुआ हूं। इससे पहले पंजाब केसरी में दो महिने कंटेट राइटर का कार्य किया हैं। इसके अतिरिक्त लेखक के तौर पर सामाजिक आर्टिकल और काव्य- संग्रह में भी सक्रिय रहता हूँ।