1977 में जब पूरे प्रदेश और उत्तर भारत में जनता पार्टी की आंधी थी, तब केवल उचाना से कांग्रेस की सीट निकाली थी
Kon hai Birender singh : पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह को हरियाणा की राजनीति का ट्रेजडी किंग माना जाता है। अपने राजनीतिक करियर में पांच बार विधायक रहे तो तीन बार केंद्र में मंत्री बने लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की टीस हमेशा से रही और आज भी मंच से गाहे-बगाहे यह टिस उभर कर आ जाती है।
बीरेंद्र सिंह अपने बेबाक बोल के लिए जाने जाते हैं। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब सीएम थे तो उन्हें सीधे भुप्पी कहकर बुलाते थे, भाजपा ज्वाइन करने के बाद सीएम मनोहर लाल को भी आइना दिखाने का काम इन्होंने किया था। जो भी कहना, सीधे मुंह पर कहना बीरेंद्र सिंह (Kon hai Birender singh) की आदत रही है।
बीरेंद्र सिंह शुरू से ही गांधी परिवार के प्रति समर्पित रहे हैं। राजीव गांधी के साथ उनके नजदीकी संबंध माने जाते हैं। 2014 में भाजपा ज्वाइन करने के बाद भी गांधी परिवार में आस्था कम नहीं हुई। उनके राजीव गांधी कालेज उचाना में मुख्य आफिस से लेकर लाइब्रेरी में राजीव गांधी का फोटो आज भी टंगा हुआ है।
माना जाता है कि जो लोग पार्टी बदलते हैं तो पहले वाली पार्टी का झंडा और डंडा उतार देते हैं लेकिन बीरेंद्र सिंह ने कालेज में लगी राजीव गांधी की मूर्ति को कभी नहीं हटाया था।
जनता पार्टी की आंधी में भी निकाली थी कांग्रेस की सीट
बीरेंद्र सिंह बांगर के कद्दावर नेता माने जाते हैं। बीरेंद्र सिंह लहरों के बहाव के विपरित भी चलने का मादा रखते हैं। साल 1977 में पूरे हरियाणा, राजस्थान समेत उत्तर भारत में जनता पार्टी की आंधी थी तो उस दौर में भी बीरेंद्र सिंह (Kon hai Birender singh) ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी।
उस समय लोकदल की टिकट पर रणबीर चहल बड़ौदा उनके सामने प्रतिद्वंदी थे। बीरेंद्र सिंह जब सीएम के प्रबल दावेदार थे, तब भी वह सीएम नहीं बन पाए थे, इसलिए उनके मन में सीएम बनने की टिस हमेशा रही।
1991 में भूपेंद्र हुड्डा की टिकट कट गई थी तो राजीव गांधी से कहकर बीरेंद्र सिंह ने ही दिलवाई थी टिकट
बीरेंद्र सिंह खुद बेशक सीएम नहीं बन पाए लेकिन उन्हें हरियाणा की राजनीति में ट्रेडडी किंग का मेडल जरूर मिला। साल 1991 में जब पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा की टिकट कट गई थी तो बीरेंद्र सिंह (Kon hai Birender singh) ने राजीव गांधी से कहकर भूपेंद्र हुड्डा की टिकट पक्की करवाई थी। 1991 में बीरेंद्र सिंह कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष थे और सीएम के प्रबल दावेदार भी थे लेकिन राजीव गांधी की हत्या के साथ ही बीरेंद्र सिंह के सितारे भी गर्दिश में चले गए।
पांच बार विधायक, तीन बार रहे केंद्र में मंत्री
बीरेंद्र सिंह 1977 में, 1982 में, 1991 में, 1996 में तथा 2005 उचाना विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए तो 2006 में हुड्डा सरकार में वह वित्त मंत्री भी बने। इससे पहले 1991 से 1993 तक भजनलाल सरकार में राजस्व मंत्री थे। 1982 से 1984 में बीरेंद्र सिंह का-आप्रेटिव मंत्री बने थे। बीरेंद्र सिंह युवा कांग्रेस से लेकर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। कई राज्यों के प्रभारी रहे।
हमेशा बेदाग और साफ सुथरे मूल्यों की राजनीति की
बीरेंद्र सिंह ने हमेशा ही अपने साफ-सूथरे मूल्यों की राजनीति की। उन पर राजनीति में कभी भ्रष्टाचार का दाग नहीं लगा। उनके पिता चौधरी नेकीराम भी मंत्री रहे। उनकी मां का नाम भगवान देवी थी, जो चौधरी छोटूराम की बेटी थी। बीरेंद्र सिंह (Kon hai Birender singh) छोटूराम के दोहते हैं। बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह हिसार लोकसभा से सांसद रहे हैं तो उनकी पत्नी प्रेमलता उचाना विधानसभा क्षेत्र से विधायक रही हैं।