भाजपा के झंडे के बिना दिखाई थी ताकत, अब मौके पर लगाया चौका
Brijender singh left bjp : सांसद बृजेंद्र सिंह की कांग्रेसी में एंट्री अचानक नहीं हुई है। इसकी बाकायदा पूरी पटकथालिखी गई थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने इसका प्लेटफार्म तैयार किया था। उनकी पूर्व सीएम एवं नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा से कार्यक्रमों में 2-3 बार मुलाकात हुई थी।
इन्हें इसी पटकथा से जोड़कर देखा जा रहा है। क्योंकि बीरेंद्र सिंह किसान आंदोलन से ही सार्वजनिक मंचों पर किसानों के साथ खड़े होने की बात कह रहे थे, जजपा से गठबंधन तोड़ने की वकालत भी भाजपा में करते रहे।
2 अक्टूबर, 2023 में उन्होंने बिना भाजपा के झंडे के जींद में रैली की थी। जिसमें उन्होंने घोषणा की थी कि जजपा से यदि भाजपा गठबंधन नहीं तोड़ती है तो वे पार्टी छोड़ देंगे। बेटे एवं सांसद बृजेंद्र सिंह (Brijender singh left bjp) ने भी पिता का समर्थन किया था। भाजपा ने जजपा के साथ गठबंधन नहीं तोड़ा। हालांकि बीच-बीच में प्रदेश नेतृत्व अकेले चुनाव लड़ने की बात कहता रहा।
अब लोस चुनाव की कभी भी घोषणा हो सकती है और सांसद का कार्यकाल पूरा हो गया तो बृजेंद्र सिंह ने ठीक समय पर पालाबदल (Brijender singh left bjp) लिया। क्योंकि आभास हो चुका था कि उनके पिता कई मुद्दों पर पार्टी लाइन से असहमति सार्वजनिक तौर पर जता चुके हैं, ऐसे में उन्हें टिकट नहीं मिलेगा।
बताया तो यहां तक जा रहा है कि बीरेंद्र सिंह की राहुल गांधी से मुलाकात व बृजेंद्र सिंह से बातचीत हुई है। पिता-पुत्र के बागी सुरों से भाजपा भी पूरी तरहअवगत थी। कई मुद्दों पर खुलकर भाजपा की नीतियों का विरोध भी किया।
बृजेंद्र ने कई बार संसद में भी कई मुद्दों पर अपनी सरकार को असहज भी किया। ऐसे में संभवत: पार्टी को भी इनके बगावत (Brijender singh left bjp) की अहसास पहले ही होचुका होगा। लेकिन भाजपाइयों ने कभी बृजेंद्र सिंह व बीरेंद्र सिंह की बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
जींद क्षेत्र में जाटों के वोटों का कांग्रेस को हो सकता है फायदा
बृजेंद्र सिंह के जाने के बाद बीरेंद्र सिंह के लग रहे कयासों से साफ है कि भाजपा से एक बड़ा जाट चेहरा छिटक जाएगा। कांग्रेस में पहले से ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला व किरण चौधरी जाट चेहरा हैं। अब बृजेंद्र सिंह शामिल हो गए हैं। ऐसे में जींद क्षेत्र में कांग्रेस को जाट वोट खींचने में और आसानी होगी।
क्योंकि जींद व आस-पास के क्षेत्र में जाटों के अच्छे-खासे वोट हैं, जिनमें काफी बीरेंद्र के परिवार के समर्थक माने जाते हैं। वैसे भाजपा का फोकस फिलहाल गैर जाट वोटों पर है। लंबे समय के बाद प्रदेशाध्यक्ष भी नॉन जाट चेहरे को पार्टी बना चुकी है। बीरेंद्र के जल्द कांग्रेस में शामिल होने की संभावना प्रबल है।
कांग्रेस में शामिल होने वे उचाना से विधानसभा चुनाव में उतर सकते हैं। ऐसा हुआ तो यहां मुकाबला प्रदेश की सियासत के बड़े प्रतिदंद्वी बीरेंद्र वर्सेज दुष्यंत होगा। क्योंकि जजपा से डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला भी यहीं सेचुनाव लड़ने की कह चुके हैं।
इसी सीट पर 2019 में दुष्यंत ने बीरेंद्र सिंह की पत्नी एवं भाजपा उम्मीदवार प्रेमलता को हराया था। यहीं से दुष्यंत चौटाला और बीरेंद्र सिंह के बीच खटास बढ़ी। इसी वजह से बीरेंद्र हमेशा भाजपा को जजपा से गठबंधन तोड़ने की बात कहते रहे पर पार्टी ने इसे नहीं माना।
क्योंकि उन्हें यह भी अहसास था कि यदि विधानसभा चुनाव गठबंधन में लड़ाजाता है तो उचाना सीट जजपा के खाते में जा सकती है। जहां से दुष्यंत चौटाला खुद चुनावलड़ने की बात कहते रहें हैं। अब बीरेंद्र कांग्रेस में जाकर खुद दुष्यंत के सामने उतर सकते हैं।