Jind election mudda : चार प्रतिशत से भी कम में है वन क्षेत्र, विकास की भेंट चढ़े एक लाख से ज्यादा पेड़
Jind election mudda : जींंद । बिना उद्योगों के ही जींद विश्व के अधिक प्रदूषित शहरों में शामिल है। संसदीय चुनावों में मतदाता इसे बड़ा मुद्दा मान रहे हैं। प्रदूषण को कम करने के लिए दावे तो प्रशासन व सरकार करते रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस उपाय नहीं हो पाया है। प्रदूषण बढ़ने का कारण फसल अवशेष जलना, टायर से तेल निकालने वाली फैक्ट्रियां, वाहनों का धुआं सहित कई कारण हैं। बदहाल सड़कों से भी धूल उड़ती रहती है।
सितंबर से नवंबर के दौरान स्थिति ज्यादा गंभीर होती है। एक्यूआइ (Air Quality indux) 400 के पार भी पहुंच जाता है। जिससे लोगों का दम घुंटने लगता है। इन तीन महीनों में हवा का दबाव कम रहता है और उमस बढ़ जाती है। जिससे धुएं और धूल के कण वायुमंडल में जम जाते हैं। इन्हीं महीनों में धान की कटाई का कार्य चलता है। धान की कंबाइन (Jind election mudda) से कटाई के बाद फसल अवशेष जलाए जाते हैं। वहीं पंजाब में भी जलने वाले फसल अवशेष का धुआं जींद जिले में आ जाता है। आसमान में धुएं की चादर छाई रहती है।
फसल अवशेष ना जलें, इसके लिए सरकार किसानों को कृषि यंत्रों पर हर साल अनुदान भी देती है। स्ट्रा बेलर से पराली की गांठ बनाकर उसका बायो गैस व अन्य कार्यों में प्रयोग की भी योजना बनी। पिल्लूखेड़ा में बायो गैस प्लांट भी लगा। लेकिन इस प्लांट ने निर्धारित लक्ष्य के अनुसार किसानों से पराली की गांठ नहीं खरीदी। जिसके कारण किसानों ने धान की कटाई के बाद फसल अवशेष में आग लगाई। प्रशासन के रिकार्ड में तो हर साल फसल अवशेष जलने के मामलों में कमी आ रही है। लेकिन प्रदूषण का स्तर कम नहीं हो रहा है।
टायर से तेल निकालने वाली फैक्ट्री नियमों का उठा रही (tyre fectory in jind polluted) फायदा
जिले में टायर से तेल निकालने वाली करीब 18 फैक्टरी हैं। जिनमें टायर के रबड़ को पिघला कर तेल निकाला जाता है। जिससे जहरीला धुआं निकलता है। जहां ये फैक्ट्री लगी हुई हैं, उनके आसपास के गांवों में जहरीले धुएं की वजह से लोगों को परेशानी होती है। लोगों द्वारा कई बार ये मुद्दा अधिकारियों व नेताओं के सामने भी उठाया जाता (Jind election mudda) रहा है।
लेकिन नियम ऐसे हैं, जिसके कारण ये फैक्ट्रियां कार्रवाई से बच जाती हैं और प्रशासन इन्हें बंद नहीं करवा पाता। हालांकि प्रदूषण के चलते पिछले पांच साल टायर से तेल निकालने वाली नई फैक्ट्री लगाने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
गेहूं के फसल अवशेष के साथ हरियाली भी जल रही (Greenery is also burning along with wheat crop residue)
गेहूं की कटाई के बाद रीपर से तूड़ी बनाने का कार्य भी पूरा हो चुका है। किसान खरीफ की फसल के लिए खेत तैयार कर रहे हैं। खेत को जल्दी तैयार करने के चक्कर में फसल अवशेष में आग लगा रहे हैं। इससे फसल अवशेष के साथ-साथ खेतों के मेढ़ पर और सड़क किनारे पेड़ भी जल रहे हैं।
विकास की भेंट चढ़े एक लाख से ज्यादा पेड़
जींद जिले में पिछले सात-आठ साल में नेशनल हाईवे, फोरलेन बने हैं। जिसके चलते एक लाख से ज्यादा पेड़ काटे गए। वन विभाग काटे गए पेड़ों के बदले नए पौधे लगाता है। लेकिन इन पौधों को पेड़ बनने में कई साल लग जाते हैं।
जिले में है आटो की भरमार (Auto in jind)
जींद जिले में करीब पांच हजार आटो हैं। इनमें से बड़ी संख्या में पुराने आटो दौड़ रहे हैं, जिनकी फिटनेस भी नहीं है। जिसके चलते ज्यादा धुआं छोड़ते हैं। शहर में जाम लगने का कारण भी आटो बनते हैं। वन नीति के तहत 33 प्रतिशत वन क्षेत्र होना चाहिए। वहीं जहां ज्यादा कृषि होती है, वहां पर 20 प्रतिशत वन क्षेत्र जरूरी है। कृषि प्रधान राज्य होने के कारण हरियाणा में 20 प्रतिशत वन क्षेत्र होना चाहिए। लेकिन जींद जिले में चार प्रतिशत से भी कम वन क्षेत्र (forest area in jind) है।
सफाई करते समय नहीं होता पानी का छिड़काव
शहर में मुख्य मार्गों की सफाई स्वीपिंग (Jind election mudda) मशीन करती है। एनजीटी की गाइडलाइन के अनुसार स्वीपिंग मशीन से सफाई करते समय पानी का छिड़काव भी करना होता है। ताकि धूल ना उड़े, लेकिन शहर में इन गाइडलाइन की अनदेखी हो रही है और पानी का छिड़काव किए बगैर ही सफाई की जाती है। जिससे धूल उड़ती है।
खुले में मल डाल रहे टैंकर वाले
निजी टैंकर वाले शौचालय की कुई की सफाई करके मल कहीं भी खुले में डाल देते हैं। जबकि नियमानुसार ये मल एसटीपी में डालना होता है। खुले में मल डालने की वजह से दूर तक बदबू फैलती है। इन टैंकर वालों के खिलाफ प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।
जिले में कुल पेड़ : करीब 21 लाख
इनमें सरकारी पेड़ की संख्या : लगभग 10 लाख
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बार-बार उखाड़ी जाती सड़क, सांसद के सामने भी उठता रहा मामला
शहर में पिछले कुछ साल में एक विभाग सड़क बनाता है, दूसरा विभाग पाइप लाइन या केबल दबाने के लिए सड़क को उखाड़ देता। ऐसा विभागों में तालमेल की कमी के कारण होता रहा। तत्कालीन सांसद रमेश कौशिक के सामने भी बैठकों में बदहाल सड़कों का मामला उठता रहा। अगर विभाग आपसी तालमेल के साथ (Jind election mudda) सड़क व गली निर्माण से पहले पाइप लाइन व केबल दबाते, तो सड़क को दोबारा उखाड़ने की नौबत नहीं आती।
शहर में अमृत योजना के तहत नगर परिषद ने बरसाती पानी निकासी के लिए पाइप लाइन दबाई थी। जिसके चलते शहर की कई सड़कों व गलियों को उखाड़ा गया। इन ऊबड़-खाबड़ सड़कों से धूल उड़ती रही। दोबारा इनका निर्माण होने में लंबा समय बीत गया। बार-बार शहरवासियों के मुद्दा उठाने के बावजूद भी सही से काम नहीं हो सका।
सुझाव :
सरकार ने किसानों से पराली की गांठ खरीदने की योजना बनाई थी, इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।
प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद पालीथिन प्रयोग हो रही है, पालीथिन के उत्पादन और प्रयोग को पूरी तरह से बंद किया जाए।
हर साल लाखों पौधे लगाए जाते हैं, रखरखाव के अभाव में काफी पौधे सूख जाते हैं। पौधारोपण के साथ ही उसके रखरखाव की भी जवाबदेही तय हो।
10 साल से पुराने खटारा वाहनों को ना चलने दिया जाए। ओवरलोडिड वाहनों पर भी सख्ती बढ़ाई जाए।
जो फैक्ट्रियां नियमों की अनदेखी कर प्रदूषण फैला रही हैं, उन्हें बंद किया जाए।
आटो की जगह पर ई रिक्शा को बढ़ावा दिया जाए या शहर में यात्रियों की सुविधा के लिए बसें चलाई जाएं।
मानकों के अनुसार हैं टायर वाली फैक्ट्री
हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अश्विनी कुमार ने कहा कि जींद जिले में प्रदूषण की समस्या रही है। पंजाब में जो फसल अवशेष जलते हैं, उसका धुआं भी जींद जिले में आता है। फसल अवशेष (Jind election mudda) जलने के मामले कृषि विभाग देखता है। फैक्ट्रियों का निरीक्षण किया जाता है और खामियां मिलने पर कार्रवाई की जाती है।
टायर से तेल निकालने वाली जो फैक्ट्री जिले में चल रही हैं, वे सभी मानक पूरे करती हैं। साल 2019 से टायर से तेल निकालने वाली फैक्ट्री के लिए अनुमति देनी बंद की हुई है।
एक्सपर्ट व्यू
खेतों में आग लगाना बंद करना होगा। जो फसल अवशेष हैं, उन्हें मिट्टी के अंदर दबाएं। जिससे जमीन में जरूरी पोषक तत्व की पूर्ति होगी। हरियाणा में 30 प्रतिशत जमीन खत्म हो चुकी है। गोबर खेत में जाए और यूरिया-डीएपी का प्रयोग कम हो। ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाए जाएं। अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग से खाने की थाली में भी जहर आ चुका है। इसलिए कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर उसकी जगह प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना होगा।
जयपाल आर्य, सह प्राध्यापक रसायन शास्त्र, केएम कालेज नरवाना
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